कुशवाहा समाज के पूर्वज उपजातियां एवं संस्कृति । कोन है कुशवाहा? जानिए
कुशवाहा समाज के पूर्वज उपजातियां एवं संस्कृति ।
कोन है कुशवाहा? जानिए
कुशवाहा मुख्य रूप से एक बृहद समुदाय का हिस्सा हैं जिसका अतीत स्वर्णिम और इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. अपने गौरवशाली इतिहास को भूल जाने कारण कुशवाहा समाज को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन कुशवाहा समाज अब अपनी पहचान वापस पाने के लिए, विकास की मुख्यधारा में आने के लिए और एक राजनितिक शक्ति बनने के लिए संघर्षरत है और सफल भी हो रहे हैं.
कौन हैं कुशवाहा
◆ नेपाल और भारत का हिन्दू समुदाय (धर्म) कई जातियों से से बना हुआ है. कुशवाहा मुख्य रूप से भारतीय हिन्दू समाज की एक वंश/जाति है. कुशवाह , समुदाय कुशवाह नाम से भी जाना जाता है.
◆ कुशवाह शब्द कम से कम चार उपजातियों (कुशवाह, कछवाहा, कोइरी व मुराओ) के लिए प्रयोग किया जाता हैं.
वर्तमान में कच्छवाहा , कोईरी, मुराव , व मौर्य कुशवाहा समाज के की उपजातियां है।
कहाँ पाए जाते हैं-
◆ कुशवाहा नेपाल और भारत के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग नामों से पाए जाते हैं. मुख्यतः कुशवाहा नेपाल के तराई और उत्तर भारत में पाए जाते हैं. इसका निवास क्षेत्र बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड , मध्यप्रदेश है।
वर्तमान स्थिति-
◆ आज की वर्तमान दशा में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा होने के कारण कुशवाहा समाज को भारत के अलग -अलग राज्यों में “अन्य पिछड़ा वर्ग” या पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
कुशवाहा समाज की उत्तपत्ति और पूर्वज :-
◆ कुशवाहा या कछवाहा समाज के लोग अयोध्या के सूर्यवंशी राजा भगवान राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज है।
इसी वश के सुर्यवंशी सम्राट चन्द्रगुप्त मोरिय ने अत्याचारी राजा शुद्र घनानंद को मार कर भारत को यूनिनियो के आक्रमण से बचाते हुवे एक अखण्ड राष्ट्र का निर्माण करने का गौरव प्राप्त किया था।
◆ सुर्यवंशी क्षत्रिय कुशवाहा कच्छवाहा -- मुगल काल मे अपने वश कि रक्त शुद्धता और राज सत्ता के विमुख होने के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में जा बसे और जीविका के लिए कृषि कार्य को चुना, कृषक होने के नाते ही इनका नाम कोईरी पड़ा क्यो की कोईरी शब्द का शाब्दिक अर्थ है (कु - पृथ्वी / अरी- शत्रु) अर्थात पृथ्वी का शत्रु होता है। यह उपमा इन्हें कृषिकर्मी होने के कारण ही मिली जो इनके कर्म को परिभषित करता है वश को नही , अतः कोईरी शब्द को कुशवाहा कच्छवाहा समाज की जाती या वश के सन्दर्भ में नही देखना चाहिये। बल्कि कुशवाहा कच्छवाहा वंश की उपमा या विशेषण के सन्दर्भ देखना चाहिये।
◆ कई स्वतंत्र राज्यों व रियासतों जैसे अलवर, आमेर (वर्तमान जयपुर) व मैहर पर कुशवाहा जाति का शासन रहा जो इनके पूर्वती इतिहास को सुदृढ़ करता है।
◆ पारंपरिक रूप से कुशल किसान और खेती करने के कारण कुछ अतिबुद्धिमान टाईप के लोगो ने कुशवाहा वश को शूद्र वर्ण का बताने की कु चेष्टा की , लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान कुशवाहा समुदाय की जातियों ने ब्रिटिश प्रशासको के समक्ष अपने आप को परंपरागत शूद्र बताये जाने के विरुद्ध चुनौती देते हुव विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर स्वयं को क्षत्रिय वर्ण में शामिल करने की मांग की.
◆1910 में काछी और कोइरी समाज ने संगठन बनाकर अपनी वश परम्परा और उपजातियों को सुदृढ़ करने का कार्य तेज कर दिया था।
◆ 1928 में कुशवाहा समाज की उपजाति मुराओ ने भी खुद को क्षत्रिय वर्ण का होने कि लिखित याचिका दायर की थी.
◆ 1921 मे कुशवाह क्रांति के समर्थक गंगा प्रसाद गुप्ता ने कोईरी ,काछी, मुराओ व कछवाहा जातियों के क्षत्रिय होने के साक्ष्यों पर एक किताब प्रकाशित की। गंगा प्रसाद गुप्ता ने अपने किताब में तर्क दिया कि कुशवाहा कुश के वंशज है और बारहवी शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना में इन्हों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
◆ किंतु बाद के समय मे मुस्लिमों का बर्चस्व बढ़ने और राज सत्ता से दिनों दिन विमुख होने के कारण कुशवाह समुदाय तितर बितर होकर अपनी पहचान भूल गया व जनेऊ आदि परंपराए त्याग कर निम्न स्तर के कार्यो में संलग्न हो अलग अलग नामो से स्थानीय समुदायो में विभाजित हो गया.
◆ कृषक होने के नाते शुद्र वर्णीय माने जाने के आरोपो का खंडन करते हुवे कुशवाह समाज के विद्वानों का यह तर्क काफी प्रसिद्ध हुवा कि राजपूत, भूमिहार व ब्राह्मण भी खेतो में काम करते है, इसलिए किसान होने और खेती करने के कारण कुशवाहा समुदाय को शूद्र वर्ण से जोड़ा कर देखना दुर्बुद्धि का परिचय देना है। जबकि भारतीय समाज मे कृषि अग्रणीय कर्म रहा है भारत कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता रहा है ऐसे में इस देश का कृषक शुद्र कैसे हुवा । अतः कृषक शुद्र नही श्रेष्ठ कर्म करने वाले पुरुषर्थी लोग है।
◆ कुशवाह, कछवाहा, कोइरी व मुराओ ने अपने सामाजिक संगठन को मजबूत करने के लिए एक नाम कुशवाहा शब्द प्रयोग करने पर बल दिया था । लेकिन बाद में इस बात पर विवाद होने लगा , और कछवाहा से इनकी दूरी बढ़ गयी कारण यह था कि कछवाहा राजपूत समाज का हिस्सा बन चुके थे जबकि विस्तहपित कुशवाहा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक जाति के रूप में गिने जाने लगे थे।
कुशवाहा समाज के ऐतिहासिक साक्ष्यों के संदर्भ में "
कुशवाहा कच्छवाहा क्षत्रिय उत्त्पत्ति मीमांसा जैसे ग्रंथो और आर्य समाजी विद्वानों के पाठ के आधार पर
जेम्स कर्नल टाड और गंगा प्रसाद गुप्ता जैसे कई इतिहासकारों तथा आर्य समाजी विद्वानों का मानना है कि इतिहास में वर्णित कोइली कोलिय गणराज्य का सम्बन्ध चन्द्रगुप्त से था और यह कोइली गणराज्य कोइरियो का था जो कुशवाहा क्षत्रिय थे !
जैन ग्रंथ परिशिष्ट प्रर्वन में स्पष्ट किया गया है कि चन्द्रगुप्त के पिता मगध के कोलिय थे और उनकी माता मुराव कुल से सम्बन्ध रखती थी जो कि कुशवाहा समाज की ही एक उपजाति है !
अतः ऊपरोक्त आधार पर हमने आप के समक्ष कुशवाहा समाज के पूर्वजो एव उपजातियो के संदर्भ में अपना एक संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया। उम्मीद करता हूं यह लेख आप को स्वयं के कुशवाहा होने लिए गौरवान्वित करेगा।
Comments
Post a Comment